लालबत्ति मे गूमने वाली नेता, आज चरा रही हे बकरिया जाने केसे हुई ये हालत।

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जहाँ आज कल एक बार नेता बनते ही लोग अपने ७ पुश्तें बेठ के खाए इतनी संपती बना लेते हे, वही कुच लोग अपना कर्तव्य बोहत ही ईमानदारी से निभाते हे। उसी की एक जलक लालबहादुर शास्त्री, अब्दूल कलाम, अटज जी जैसे नेता हे जिन्होंने अपना कर्तव्य बोहत ही सादगी के साथ निभाया हे। आज का किस्सा भी कुच ऐसा ही हे। जिसमे महिला जिल्ला अध्यक्ष अपनी फर्ज के बाद आज बकरिया चराने का काम करती हे।

यह खबर मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले के आदिवासी एरिया मे रहने वाली जुली की हे। जो कभी शिवपुरी जिल्ला अध्यक्ष थी। आज वह बकरिया चराके अपना गुजरान कर रही हे। २००५ मे उनहोने जिल्ला अध्यक्ष का चुनाव लडा और कुच ही वक्त मे वह जिल्ला अध्क्श बन गई। जुली अपनी सादगी और सब लोगो को साथ लेके चलने की सोच की वजह से कुच ही समय मे वह पूरे विस्तार मे लोकप्रिय हो गई।

वह बताती हे की, जिला अध्यक्ष बन ने के बाद उनहें लालबत्ति वाली गाडी भी मिली! उनके यही स्वभाव की वजह से वह मशहूर होती जा रही थी मगर कम पढ़िलिखि और पोलिटिकल सपोर्ट नही होने की वजह से उनकी बाते आगे तक कम ही जाती थी. जुली के लोक चाहना को देखते हुए उनके विरोधी भी बढ़ने लगे और उनके साथ राजनैतिक षड्यंत्र होने लगे। धीरे धीरे उनहे सभी पदो से दुर कर दिया गया। धीरे धीरे नेता उन्हें मीटिंग मे या बेठक मे काम ही बुलाने लगे, उनके साथ हो रहे भेदभाव को देख के उन्होंने राजनीती से दुरी बना ली.

नेता बनके उन्होंने बडे पैसे तो बनाये नही थे, तो वह एक झोपड़ी में रह रही हे, नेताओ की नजर मे आ जाने से उनको सरकारी लाभ भी मुश्किल से मिल रहे हे. वह आज बकरी चराके अपना और अपने परिवार का गुजरान चला रहा हे. आज उनको अपने परिवार का गुजरान चलाना भी मुश्किल हो रहा हे. बकरी चराने के साथ साथ खेत मजदूरी भी कर रहे हे. आशा करते हे की उनकी मुश्किले कम हो और उनको अपना हक मिले.

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