उत्तरप्रदेश के किसान ने औषधि की खेती करके किया नया प्रयोग, मिली ऐसी सफलता की आज कही किसानो को दे रहे हे मार्गदर्शन

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हमारा देश कृषि प्रधान देश है, गाव में बसे करोडो लोगो के लिए किसानी ही आवक का माध्यम हे, लेकिन आज किसानों की स्थिति किसी से छुपी नही हे। उनकी आय को लेकर लगातार बहस होती रहती है, कि किस तरह उन्हें बढ़ाने का प्रयास किया जाए। इन सब के बीच कुछ लोग ऐसे भी हे जो कडी महेनत से कमियाभी हासिल करते हे और दुसरो के लिए उदाहरण पेश करते हैं। थोडा सा टेक्नोलॉजी का और थोड़ा टाइम मेनेजमेंट के साथ खेती की जाए तो आपकी महेनत का रीटर्न लाखो मे मिल सकता हे. उत्तर प्रदेश के लखनऊ के किसान ने कुछ ऐसा ही कर के दिखाया हे. उन्होंने जड़ी बूटी और औषधि की खेती कर के लाखो रुपये कमाए। अभी किसानो को यह समज आ गया कि पारंपरिक खेती के आगे भी कई तरह कि खेती हैं, जिसमे नए नए प्रयोग करके मुनाफा कमाया जा सकता हे.

उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले में बड़े पैमाने पर किसान पारंपरिक खेती के साथ साथ औषधि की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हे.  सूरतगंज मे रहने वाला एक किसान जिन्होंने ज्यादा पढ़ाई लिखाई नही की थी, ना ही उन्होंने खेती के अलावा कोई और काम किया है। लेकिन यह किसान ने तुलसी, शतावरी, सहजन, अदरक जैसी कही आयर्वेदिक जड़ी बुट्टीयो की खेती की है। यहा के किसानो ने देश की कई बड़ी कंपनियों से भी करार किया है, जिससे उनकी यह औषधि आसानी से अच्छे दाम में बिके। यहा के किसान अपने आसपास के किसानो को अपनी आमदनी कैसे दुगनी करें वह सिखाते हे.

यह किसान ने बताया की जब उन्होने सतावरी की खेती शरू की तो लोग उनका मजाक बना रहे थे, मगर वह पारम्परिक खेती छोड औषधिक खेती पर अपना ध्यान लगाते रहे. उन्होंने बताया की सतावरी खेती करते हुए १ एकर मे करीब १ लाख तक का खर्चा आ गया, जब ये खेती पहेली बार की थी तब वह चिंतित थे. इतना ज्यादा खर्चा औषधिक खेती करके निकलेगा भी या नहीं। पर जब फसल तैयार हुयी और उसे मार्किट में बेचा गया तो उनको करीब ५ लाख रुपये मिले। जो उनकी पारम्परिक खेती से बोहत ज्यादा था. उन्होंने बताया की प्रति एकर १८ से २० क्विंटल की उपज हो जाती हे.

जैसा की हम लोग जानते हे पारंपरिक खेती में कोई खास मुनाफा नहीं है, जैसे कि धान, गेहूं, गन्ना ने पैसे बुवाई में लगते हैं, दवाइया उसका रख रखाव उसके बाद कटाई में भी भरी मात्रा में पैसे लगते हे, मगर जब वह किसान वह उपज बेच ने जाता हे तो मंडी में या बाजार मे उसको अपनी मजदूरी की लागत नहीं मिल पति. यहा के किसानो ने केंद्रीय औषधीय संस्थान के द्वारा औषधि की खेती कैसे करनी हे, वह जानकारी हासिल करी थी,और सबसे पहले मध्यप्रदेश की कंपनी से करार किया था। यहा के किसानो ने खेती शरू होने से पहले ही कॉन्टैक्ट पद्धति के हिसाब से अपनी उपज की कीमत तय कर दी थी. आज भरी मात्रा मे किसान कर्ज के बोज के निचे हे या किसानी छोड रहे हे. खेती छोड ने का सबसे बडा कारण है कि उनको अपनी महेनत के सामने उतना मुनाफा नहीं मिल पाता, वही औषधि,बगायत, ग्रीनहॉउस या तक्नीक का सही उपयोग करके कुछ किसान अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हे.

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