हमने कई बार देखा है की शादी होने के बाद कुछ आतंरिक या निजी या किसी अन्य कारणों की वजह से पति पत्नी के बिच कलह बढ़ता है और आखिर में वह तलाक के रूप में सामने आता है| ऐसे में आपने अभी तक ऐसा ही सुना होगा की पति को अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देना होगा| लेकिन आपको शायद मालुम नहीं होगा की एक कोर्ट ने हाल ही में पति के बजाय पत्नी को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है|
अगर पत्नी, नाबालिग बच्चे, बूढ़े माता पिता जिनका कोई भरण पोषण सहारा नहीं है, और जिन लोगो को अपने पति या पिता ने छोड़ दिया है या फिर बूढ़े माता पिता को अपने बेटो या बेटी द्वारा भरण पोषण का खर्च नहीं दिया जा रहा है ऐसे व्यक्तिओ के लिए धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता बनाई गई है| जिसका इस्तेमाल करके व्यक्ति अपने भरण पोषण का दावा कर सकता है|
बोम्बे हाई कोर्ट ने एक मामले में एक पत्नी को अपने पूर्व पति को महीने के 3000 रुपये देने का कहा है| तलाक हो जाने के बाद पति ने अपनी पाटने के खिलाफ आचिका करते हुए कहा था की उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और पत्नी के पास नौकरी है तो महीने के 15,000 रुपये स्थाई भत्ता देने की मांग करी थी| पति ने याचिका में कहा था की पत्नी को पढ़ाने में पति का काफी योगदान भी है|
आपकी जानकारी के लिए हम आपको बतादेते है की अलग अलग धर्म के हिसाब से यह कानून क्या कहता है?
हिंदूः हिंदू मैरेज ऐक्ट 1955(2) और हिंदू अडॉप्शन ऐंड मेन्टिनेंस ऐक्ट, 1956 के तहत महिलाओँ को तलाक के बाद गुजारा भत्ता मांगने का हक है।
पारसीः पारसी मैरेज ऐंड डिवॉर्स ऐक्ट, 1936 के तहत अगर महिला तलाक के बाद दूसरी शादी न करने का फैसला करती है तो वह बतौर गुजारा भत्ता पति की नेट इनकम के अधिकतम पांचवे हिस्से की हकदार है।
मुस्लिमः मुस्लिम विमिन(प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डिवॉर्स) ऐक्ट, 1986 के तहत बीवी को इद्दत की अवधि के दौरान गुजारा खर्च देना होता है और महर की रकम वापस करनी होती है।
ईसाईः इंडियन डिवॉर्स ऐक्ट 1869 के सेक्शन 37 के तहत तलाकशुदा पत्नी सिविल या हाई कोर्ट में जीवनयापन के लिए गुजारा भत्ते की मांग कर सकती है।