नीम करोली बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में हुआ था। उनका बचपन का नाम लक्ष्मी नारायण था. उनका जन्म 1900 की साल मे हुआ था, बचपन से ही वह तेजस्वी थे ओर आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित थे. नीम करोली बाबा 11 साल की उम्र में ही घर से संयास ले लिया था, मगर माता पिता के कहने पर वह वापस घर पर लौटे। उनका मानना था कि मां बाप की आज्ञा के बिना सन्यास लेना या उनको दुखी करके घर से जाना सन्यास को सिद्ध नहीं कर पाएगा। उसके बाद वह अपने परिवार के साथ हैं आध्यात्मिक जीवन जी रहे थे। 1958 में नीम करोली बाबा ने घर से सब की आज्ञा लेकर सबको विश्वास मे लेकर सन्यास लिया।
बाबा बिना ट्रेन की टिकट के हैं ट्रेन में सवार होकर अपने वतन से कहीं दूर जाने के लिए निकल पड़े थे। जब टिकट चेक करने वाले ने उनको बिना टिकट के देखा तो उनको ट्रेन से नीचे उतार दिया वह गांव फर्रुखाबाद जिले का नीम करोली गांव था। ऐसा माना जाता है कि जब बाबा को ट्रेन से नीचे उतारा गया तो वह ट्रेन फिर से शुरू होने का नाम नहीं ले रही थी। तब मिकेनिकल तक को बुला लिया गया मगर वह भी ट्रेन को फिर्स शरू कर नही पाए. उसके बाद ट्रेन मे सवार यात्री यो ने बिन की की बाबा को समझाया जाए और उनको फिर से ट्रेन में बिठाया जाए। जब ट्रेन के अफसर बाबा से बात करने गए तो बाबा ने कहा कि अगर भविष्य में भी कैसी भी सन्यासी के साथ ऐसा अपमान ना करने की प्रतिज्ञा लेते हो तो मैं ट्रेन में फिर से ट्रेन मे सवार हो जाने से ट्रेन चालू थोड़ी ना हो जाएगी। यह कहकर बाबा हंस दिए बाबा को बिनती व आजीजी के बाद बाबा ट्रेनें मे फिर से सवार हो गए और उसके बाद जब ट्रेन चालू करने का प्रयत्न किया गया तो ट्रेन बिना किसी दिक्कत के फिर से शुरू हो गई। और तभी से बाबा को नीम करोली बाबा के नाम से जाना गया।
उसके बाद वह गुजरात के मोरबी शहर में रहे जहां पर कुछ सालों तक उन्होंने साधना और तपस्या की और वहां पर वह तालिया बाबा के नाम से जाने गए। उसके बाद उन्होंने मोरबी से वृंदावन के तरफ प्रयान किया वृंदावन में उनके चमत्कार कुछ वक्त में लोगों में मशहूर हो गए और उसके बाद से उनको चमत्कारी बाबा के नाम से जाना गया. कुछ सालों में उनके नाम के हनुमान जी को समर्पित 100 से ज्यादा मंदिर हो गए थे। आज भी खींचीधाम मे उनका आश्रम में मौजूद है। उसके बाद उन्होंने देवभूमि उत्तराखंड की तरफ प्रयास किया जहां पर वह साधना के लिए असाधारण जगह ढूंढ रहे थे जहां से भगवान का सीधा संपर्क किया जा सके इसी खोज में वह नैनीताल अल्मोड़ा रोड के पास हजारों साल पुराने साधुओं की गुफाएं खोजी.
उन्होंने वही अपना आश्रम बनाकर आगे की साधना और तपस्या शुरू की। माना जाता है कि हनुमान जी उनको सीधे दर्शन देते थे और उसी के चलते वह एक हनुमान भक्त बन गए। उन्होंने अपनी बाकी की जिंदगी इसी स्थान पर जीने का फैसला किया। और वहां पर हनुमान मंदिर और आश्रम स्थापित किया। उसके कुछ साल बाद विदेशी पर्यटक मेडिटेशन और साधना की खोज में बाबा के पास आने लगे जब पहला ग्रुप बाबा से प्रभावित होकर अमेरिका पहुंचा तो बाबा की चर्चाएं अमेरिका में मशहूर होने लगी। और देखते ही देखते हैं अमेरिका से लोग बाबा के आश्रम में बाबा से ज्ञान पाने के लिए आने लगे कई बार तो ऐसा देखा गया था कि बाबा के आश्रम भारतीयो से ज्यादा विदेशी पहुंच जाया करते थे।
बाबा के भक्तो मे अमेरिकन भगवान दास, कृष्ण दास, मार्क जुकरबर्ग, स्टीव जॉब्स, लेरी पेज, राम रानी, सूर्या दास जैसे मशहूर विदेशी शामिल हे जिनकी जिंदगी बाबा के आशीर्वाद से बदल गई। आगए बताएंगे कि कैसे बाबा ने एप्पल के मालिक स्टीव जॉब्स कि जिंदगी बदल दी.