गेहू की ए 3 उन्नत नस्ले, जो किसानों को दे सकती है भारी मुनाफा।

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ठंड शुरू होने के साथ-साथ किसान भी गेहूं की फसल लगाना शुरू कर देते हैं। गेहू ज्यादातर पूरे भारत में उगाया जाता है और इसे बड़े चाव से खाया जाते हैं। बिना गेहूं के भारतीय खाने की कल्पना करना भी मुश्किल है। गेहूं की वजह से ही गरीब की थाली में रोटी देखने को मिल जाती है। भारत मे भारी मात्रा में गेहूं की खेती की जाती है जिसकी वजह से इसकी कीमत भी कम रहती है, तभी यह गरीब और मध्यम वर्ग के बजट में आती है। बिना दाल के 1 दिन काम चल सकता है मगर बिना गेहूं कि 1 दिन भी निकालना मुश्किल रहता है सुबह से शाम भारतीय खाने में गेहूं की रोटी का इस्तेमाल होता है। गेहूं और चावल भारत मे खाए जाने वाले दो सबसे ज्यादा धन्य है। आइए जानते है तीन उन्नत नस्लें जिनको उगाने से किसान भारी मात्रा मे उपज ले सकता है और अच्छा पैसा कमा सकता है।

करन नरेंद्र: कही किस्मो मे से एक किस्म हे, इस किस्म को बहुत लाभ दे मानी जाती है। इसको डी बी डब्लू 222 नाम से भी जाना जाता है। इस किस्म की बुवाई का उचित समय 15 अक्टूबर से 30 नवंबर तक का है। इस किस्मों में आयरन की मात्रा भी अच्छी रहती है! और माना जाता है कि इस किस्म के गेहूं की रोटी बहुत पोष्टिक होती है और स्वाद भी बहुत ही अच्छा होता है। यह किस्म 140 दिन में तैयार हो जाती है। इस किस्म से 60 से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार ली जा सकती  है।

पूसा यशस्वी : गेहूं की किस्म ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्रों में उपयोग में ली जाती है। यह भारत के हिमाचल प्रदेश, कश्मीर, उत्तराखंड जैसे राज्यों में उगाई जाती हे.  इसकी बुआई भी 15 अक्टूबर के बाद से लेकर 25 नवंबर तक की जाए तो उसको उचित माना जाता है। इस किस्मत से किसान प्रति हैक्टर  50 से 70 क्विंटल की पैदावार प्राप्त कर सकता है और ऐसे 130 से डेढ सौ दिनों में गेहूं के तैयार हो जाता है।

डी डी डब्ल्यू 47: इस किस्म को भी 20 अक्टूबर से लेकर 20 नवंबर तक उगाने का उचित समय माना जाता है. यह एक विशेष तरीके का गेहूं है जो 70 से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार देता है इस किस्म का गेहूं में प्रोटीन से भरपूर और लाभदाई माना जाता है। इस किस्म के गेहूं को उगने मे 130 दिन से 150 दिन लगते हैं। आजकल गेहू की उगाने का समय आ गया हे इस वजह से किसान दिन रात मेहनत करके गेहूं की बुआई मे लगे हुए हैं।

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