आज की आधुनिक दुनिया मे भारत के महान शोधको का बहुत बड़ा हाथ हे। चाहे वह गणितशास्त्र हो, या फिर आयुर्वेदा हो या फिर आधुनिक दुनिया मे उपयोग मे लिया जा रहा प्लास्टिक सर्जरी हो, या फिर पाणिनि का व्याकरण हो, या फिर पतंजलि की योग विद्या हो या परमाणु विज्ञानं हो। भारत के पुराने महर्षियो ने और उनकी किताबो ने आज के बड़े बडे वैगनयनिको को प्रेरणा दी हे। रसायनशास्त्र मे ऐसा ही एक नाम हजारो सालो पहले हो गया। नागार्जुन आज के गुजरात और महाराष्ट्र के हिस्से मे आज से करीब २००० साल पहले हुए थे।
भारत के महान वैज्ञानिक माने जाने वाले नागार्जुन ने छोटी सी उम्र में ही रसायन शास्त्र के क्षेत्र में शोध कार्य शुरू कर दिया था। वे भारत के चिकित्सक, रसायन शास्त्री और धातु विशेषज्ञ थे। उन्होंने इन सब पर कई पुस्तके भी लिखी हैं। कहा जाता है कि नागार्जुन किसी भी धातु को सोने में बदल देने की क्ष्यमता रक्ते थे। प्राचीन भारत, धातु विज्ञानं मे इतना अग्गे था की आज भी आप दिल्ली के पास लगे लोह स्तब्ध को देख सकते हे। धुप और बारिश होने के बावजूत १६०० साल से बिना जंग खाये खड़ा हे।
नागार्जुन दिनरात एक करके रसायनशास्त्र पर शोध करते रहे ते थे। उन्होंने कही किताबे भी लिखी हे उसमे से रस रत्नाकर और रसेंद्र मंगल काफी ज्यादा प्रसिद्ध है। उन्होंने रस रत्नाकर में कई धातुओं को शुद्ध करने की बाते बताई हुई हैं। इस किताब में किसी भी प्रकार के धातुओं को सोना में कैसे परिवर्तित करना हे वह भी बताया हे। वह अपनी प्रयोगशाला मे कही धातु को सोने मे तब्दील कर चुके थे।
नागार्जुन ने औषधियों की खोज की थी, बाद मे नागार्जुन को अमर होने वाली चीजों की खोज करनी शरू कर दी। इस खोज में वे दिन रात लगे रहते थे, जिसके कारण उनके राज्य में अव्यवस्था फैलने लगी, विद्रोह बढ़ ने लगा। और इसी की बिच मान जाता हे की नागार्जुन की रहस्य्मय मौत हो गई थी। नागार्जुन एक मात्र ऐसे शक्श थे जो किसी भी धातु को सोने मे परिवर्तन करने की ताकत रखते।