तस्वीर मे दिखाये गए पैसे आजाद हिन्द बैंक के द्वारा लाये गए थे.आजाद हिंद बैंक की स्थापना 5 अप्रैल 1944 को रंगून में की गई थी, जो इंपीरियल जापान का भी समर्थन मिला था। नेताजी ने जब दक्षिणी एसियाई देशो से सेना का गठन कर के जापान की मदद ले के भारत को आजाद करने का काम शुरू किया था. उन्होंने अंदमार निकोबार को आजाद करके वहा 1943 मे भारत का या आजाद हिन्द फौज का ध्वज फहराया था. 23 अक्टूबर 1943 को ब्रिटिश राज और उसके सहयोगियों के खिलाफ युद्ध की घोषणा की। उनको भारत के रजवाड़ो से वही देश दुनिया मे बेस भारतीयो से भारी मात्रा मे दान मिल रहा था. इसके तहत उहोने अस्थाई सरकार बनाई।

सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजो के सामने सत्याग्रह का रास्ता छोड़ सशत्र लडाई करने का फैसला किया था. उनका कहना था की “अन्याय और गलत के साथ समझौता करना सबसे बड़ा अपराध है। शाश्वत नियम को याद रखें: यदि आप आजादी प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको त्याग देना होगा। उन्होंने कांग्रेस छोड आजाद हिन्द फ़ौज का गढन किया। भारत को आजाद कराने के लिए जर्मनी से लेके जापान तक की मदद लेने की कोशिश की और अपने अंतिम श्वास तक लडते रहे.
एक रिपोर्ट के मुताबित आजाद हिंद सरकार ने रंगून मे में एक लाख, एक हजार, सौ और दस रुपए के नोट छापे थे। एक लाख के नोट पर स्वतंत्र भारत लिखा है। एक हजार के नोट पर भारत का नक्शा, सौ रुपए के नोट पर तिरंगा और किसान और दस रुपए के नोट पर हिंदुस्तान और जय हिंद लिखा है। सारे नोटों पर नेताजी की तस्वीरे छपी हुई थी। ये नोट बर्मा में छपे गए थे जहा ये बैंक मौजूद थी, इसकी शाखाये जापान और कब्जे वाले देशों में अपनी शाखाएँ बनाए।
फोटो में दिखेगे गए पैसे सही हे और इसे एक वक्त पे सुभाष चंद्र बोसे की आजाद हिन्द बैंक के द्वारा प्रिंट की गई थी. प्रारंभ में बैंक के पास 5 मिलियन की अधिकृत पूंजी और ₹ 2.5 मिलियन की चुकता पूंजी थी.नेताजी के बॉडीगार्ड रहे कर्नल निजामुद्दीन को 17 रुपए तनख्वाह मिलती थी। वहीं, आजाद हिंद फौज के लेफ्टिनेंट की सैलरी 80 रुपए महीना थी। बर्मा में तैनात अफसरों को 230 रुपए तक तनख्वाह मिलती थी। नेताजी ने आजाद हिंद फौज का खुफिया विभाग भी बनाया था। 943 को नेताजी ने ‘करो सब न्योछावर, बनो सब फकीर’ का नारा दिया था। इससे आजाद हिंद फौज के खाते में एक दिन में 20 करोड़ रुपए इकट्ठा हो गए थे।