भारतके इतिहासमें अपने राज्य को बहरी शाषणो के आक्रमण से बचने के लिए कई राजाओंने बलिदान दिए हैं। ऐसे ही अपने राज्य के लोगो के लिए बलिदान देने में भारत की रानिया भी पीछे नहीं रही। आज हम आपको ऐसी ही रानियों के बारेमे बताने जा रहे हैं जिनकी बहादुरी के किस्सों से इतिहास के पन्ने भरे हैं।
रानी चेन्नम्मा
दक्षिण भारत की सबसे बहादुर रानी यानि रानी चेन्नम्मा जोकि आधुनिक कर्नाटक की एक रियासत कित्तूर की रानी थी। छोटी उम्र से ही उनको वह लिंगायत समुदाय की बेटी थी और उनका विवाह केवल 15 वर्ष की आयु में राजा माल्लार्स से हो गया था। उनको बचपन से ही तलवारबाजी, तीरंदाजी और घुड़सवारी की तालीम मिली थी। साल 1824 में उनके पति की मोत हो गयी और उसके बाद उनके बेटे की भी मौत हो गयी। जिसकी वजह से उन्होंने राज्य की बागडोर संभाल ली।
अंग्रेजो के खिलाफ जंग छेड़ने वाली वो पहली भारतीय रानी थी। शुरूआती अंग्रेजी हमलो में रानी चेनम्मा को जित मिली और उन्होंने कुछः अंग्रेजी अधिकारियो को पकड़ लिया जिनसे समझौते के बाद उन्होंने उन अफसरों को छोड़ दिया। उसके बाद अंग्रेज एक विशाल सेना लेकर लौटे और रानी चेन्नमा को कैद कर लिया जहा कैद में उनकी मृत्यु हो गयी। रानी चेन्नम्मा को लोक वर्तम एक महँ नायक के रूप में देखा जाता है।
रजिया सुलतान
रजिया सुल्तान दिल्ली सल्तनत के शाशक इल्तुतमिस की बेटी थी।इल्तुतमिस के सबसे बेटे की मृत्यु के बाद उसने उसको अपनी उत्तराधिकारी घोषित किया था। लेकिन इल्तुतमिस के दरबारियों को ये बात बिलकुल राज़ नहीं आयी। वो किसी भी महिला शाशक को नहीं चाहते थे। जिसके कारन रज़िया को अपने हक़ की लड़ाई लड़नी पड़ी थी। दरबारियोने रजिया के भाई रुकनुद्दीन फिरोज को राजा बनाया था जो की बोहोत ही क्रूर और अयोग्य साबित हुआ। जिसकी वजह से लोगो ने रजिया को शाशक बनाने की मांग की और विद्रोह किया। रजियाने फिरोज को हराकर राज्य तो हासिल कर लिया लेकिन उसका शासन अल्पकालीन था। लेकिन वो जितने भी समय रही एक मजबूत शाशक के तौर पे रही।
रानी लक्ष्मीबाई
लक्ष्मी बाई एक ऐसा नाम हैं की जिसको भारत का बच्चा बच्चा जनता हैं। उन्होंने 1857 के विद्रोह में महत्व की भूमिका निभाई थी। रानी लक्ष्मीबाई अपने पति गंगाधरराव की मृत्यु के बाद राजगादी पर आयी। उनका कोई पुत्र नहीं था इसीलिए अंग्रेजी शाशक इसको खालसा करने की कोशिश कर रहे थे। लक्ष्मीबाई को बचपन से ही प्रशिक्षित की गयी थी। वो जबसे गद्दी पर आयी उनका शाशनकाल अंग्रेजो से लड़ने में ही चली गयी। उनकी वीरता और त्याग की कहानियो का आज भी लोग लोहा मानते हैं।
अहिल्याबाई होल्कर
अहिल्याबाई होल्कर एक ऐसी महारानी थी जिनको शाशन की बागडौर उनके ससुर मल्हार राव होल्कर से सिंहासन प्राप्त किया था। मल्हार राव होल्कर ने ही अहिल्या बाई को उनके पति खंडेराव होल्कर के पीछे सटी होने से रोका था। खंडेराव होल्कर की मृत्यु कुम्हेर की लड़ाई के दौरान हो गयी थी। अहिल्याबाई सैन्य युद्ध में प्रशिक्षित थी युद्ध भूमि में वे हमेशा ही सेना का नेतृत्व करती थी और मालवा की सेना उनका पूरा सम्मान करती थी। उन्होंने अपने जीवन काल में काशी विश्वनाथ मंदिर का भी निर्माण करवाया था। इंदौर के विकास का श्रेय अहिल्याबाई को ही जाता हैं। अहिल्याबाई ने अपने ससुर की मृत्यु के पश्चात् राजगद्दी संभाली थी। उन्होंने अपने जीवन काल में काशी विश्वनाथ मंदिर का भी निर्माण करवाया था।