यह खबर स्वदेश फिल्म से कम नहीं हे. हम कही बार देखते हे की कही लोग जो गांव छोड़ के शहर या विदेश चले जाते हे उनमे से कुछ लोग वापस गॉव की तरफ भी आते हे. हर किसी को शहर की भाग दौड़ वाली जिंदगी पसंद नहीं होती. कुछ लोग मानसिक शांति या संतुष्टि के लिए भी गॉव वापस आके बासते हे. आज का किस्सा कुछ ऐसा ही हे. रामचंद्रन का जन्म तमिलनाडु में हुआ था शरू की शिक्षा उन्होंने वही ली. कुछ सालो बाद वह नौकरी के लिए यूरोप, अमेरिका जैसे देश गुमे और वही नौकरी की.
रामचंद्रन को अहसास हुआ की उनके पास सब कुछ होते हुए भी किसी चीज की कमी हे. २००४ में रामचंद्रन ने भारत का रुख किया. उन्होंने तय किआ ही वह अपनी अग्गे की जिंदगी सादगी के साथ जियेंगे ऑर गॉव में रहेंगे साथ ही पर्यावरण सुधर पे काम करेंगे. गांव में आके सबसे पहले उन्होंने अपने लिए घर बनाने के लिए सोचा. उनके दिमाग में कही आईडिया चल रहे थे.फिर उन्होंने सोचा की वह एक इको-फ्रेंडली घर बनाएंगे. उन्होंने पोल्लाची गांव में जमींन खरीदी।
घर एक ऐसी चीज हे जो इंसान को सुरक्षित महसूस कराती हे, साथ ही इंसान को धुप बिजली बारिश से भी बचाती हे. इस्सलिये रामचंद्रन को घर समय देके अचे से बनाना था. रामचंद्रन ने घर बनाने के लिए ग्राम विद्या संस्थान से ट्रैंनिंग ली और अग्गे का काम शुरू किआ. रामचंद्रन ने छोटे पथरो को उपयोग में लिया साथ ही सीएसईबी ब्लॉक्स का उपयोग किआ जिस से घर ठंडा रहे और प्लास्टर करने की भी जरुरत न पड़े.
इसके आलावा उन्होंने रीसायकल मटेरियल का उपयोग किए जिससे कम खर्चे में घर बन सके साथ ही प्रकृति की मदद हो सके. घर की छत १४ फ़ीट तक ऊँची रखी है और ऊपर की तरफ वेंटिलेशन रखा हे. जिससे घर ठंडा रहे, और AC, कूलर की जरुरत न पड़े. घर में सोलर सिस्टम भी लगवाई गई हे, जिससे बिजली का बिल न ए. कुदरती उपकरणों का उपयोग कर के कुदरत को बचाया जा सके.
पानी की जरूरियात पूरी करने के लिए उन्होंने रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया हे.जिससे वह बरसाती पानी का संग्रह कर के पुरे साल उपयोग में लेते हे. रामचंद्रन ने ५०० पेड़ लगाए हे. जिससे जरुरी फल सब्जिया घर पे ही मिल सके. वह प्रकृति को नुकसान किये बिना अपना जीवन सादगी से जी रहे हे अगर उनकी तरह हर कोई प्रकृति की सेवा करे तो कुदरत को बचाया जा सकता हे और प्रदुषण कम किया जा सकता हे.