जब 21 सीखो ने 12000 अफ़ग़ानों को धूल चटाई थी, दुनिया की 5 सब से शौर्यवान जंग मे से एक यानि: बैटल ऑफ़ सारागढ़ी

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अफगानी सरकार जो की हजारो लाखो सेना के साथ भी १० दिन भी नहीं टिक पाए, वही भारत के पूर्वज कितने वीर रहे होंगे जिन्होंने कही सालो तक इनका सामना किया. आज हम एक ऐसी ही कहानी बताने जा रहे हे जो भारत में ही नहीं पुरे विश्व में सबसे भयानक लड़ाई में से एक मानी जाती हे. जब २१ सीखो ने १२००० अफ़ग़ानों को घुटने के बल ला दिया था.

सारागढ़ी आज के पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बॉर्डर पे आया हे. इसमें सिख सैनिकों ने सारागढ़ी किला बचाने के लिए पठानों से अपनी आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी थी जिसे लास्ट स्टैंड फाइट के लिए पूरी दुनिया याद करती हे। इसमें 36 सिख रेजिमेंट के 21 जवानों ने 12 हजार अफगान सैनिकों को धूल चटा दी थी। सारागढ़ी का ऐतिहासिक युद्ध 12 सितम्बर 1897 को ब्रिटिश भारतीय सेना और अफगानी सेना के बीच लड़ा गया था। यह युद्ध तिराह जो अब पाकिस्तान में है. युद्ध की खास बात ये थी कि इसमें ब्रिटिश भारतीय सेना में सिख पलटन की चौथी बटालियन में 21 सिख थे और इन पर 12 से 14 हजार अफगानी सैनिकों ने हमला कर दिया था। इस बटालियन का नेतृत्व हवलदार ईशर सिंह ने किया था। जो की एक बहादुर योध्या थे.

अफ़ग़ानों ने सरेंडर करने के लिए बोहत बार समझाया मगर 12 हजार अफगानी सैनिकों के आगे भी ईशर सिंह ने हार नहीं मानी बल्कि मरते दम तक लड़ने का फैसला लिया। इस कारण इस युद्ध को सैन्य इतिहास के सबसे महान अन्त वाले युद्धों में से एक माना जाता है। सुबह 9 बजे लगभग १२००० अफगानी सेना ने सारागढ़ी पोस्ट पर पहुंचने का संकेत दिया। गुरमुख सिंह के अनुसार लोकहार्ट किले में कर्नल हौथटन को सूचना मिली कि उनपर हमला हुआ है लेकिन कर्नल हौथटन सारागढ़ी में तुरन्त सहायता नहीं भेज सकते थे क्योकि दोनों किल्लो के बिच में हजारो अफ़ग़ान हथियार के साथ मौजूद थे. ऐसे में अपना शौर्य दिखाते हुए सभी सैनिकों ने अन्तिम सांस तक लड़ने का ऐतिहासिक फैसला किया।

अफगान सेना कई बार भारतीय सैनिकों को आत्मसमर्पण करने के लिए उकसाती रही। कहा जाता है कि मुख्य द्वार को खोलने के लिए दो बार प्रयास किया लेकिन असफल रहे। उसके बाद दीवार टूट गई और आमने-सामने की भयंकर लड़ाई हुई। ब्रिटिश भारतीय सैनिक और अफगानी सैनिकों के बीच युद्ध के दो दिन बाद दूसरी भारतीय सेना ने उस स्थान पर फिर से कब्जा जमा लिया था। इसके बाद अब इस युद्ध की याद में 12 सितंबर को सारागढ़ी दिवस के रूप में मनाते हे. बताया जाता है कि बचाव दल को वहा 600 अफ़ग़ानों के शव मिले थे।

हवलदार ईशर सिंह समेत सभी लड़ाके इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। ईश्वरसिंह और उनके २० साथी अफ़ग़ानों और अंग्रेजो को भारत के विरो की ताकट दिखाना चाहते थे, जिसमे वह बखूबी कामयाब हुए. इनकी बहादुरी के किस्से कुछ ही समई में इंग्लैंड तक पहुंच गए और इनकी बटालियन को विक्टोरिया अवार्ड मिला. आज भी सारागढ़ी का दिन यानि १२ सितम्बर का दिन सिख बटालियन के साथ साथ इंग्लैंड में भी मनाया जाता हे. भारत में आज के दिन को शायद ही कोई यद् करता हो पर सात समुंदर पार इंग्लॅण्ड मे आज भी इस दिन को वीरता के दिन की तरह मनाया जाता हे और शहीदो को याद किया जाता
हे.२१ सिख जवानो को हमारा नमन।

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