रविवार सुबह लताजी ने इस दुने निया को अलविदा कह दिया और पंचतत्त्व में लीन हो गई। लताजी अभी हमारे बीच नहीं रही लेकिन उन्हें उनके गानों ने अमर कर दिया है। 80 साल का गायकी का करियर. 36 भाषाओं में 30 हजार से ज़्यादा गाने. भारत रत्न, फ्रांस का सबसे ऊंचा नागरिक सम्मान, हिन्दी सिनेमा का सबसे बड़ा दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड, पद्म विभूषण, पद्म भूषण सहित ढेरों ही अवॉर्ड्स से सम्मानित हुई लता जी से पूरी दुनिया परिचित है।
लता मंगेशकर ने पूरी दुनिया में अपनी ख़ास और बड़ी पहचान बनाई थीं. 28 सितंबर 1929 को इंदौर में लता दीदी का जन्म हुआ था. नाम रखा गया हेमा. बाद में पांच साल की होने पर हेमा को नया नाम मिला ‘लता’. फिर इस नाम ने देश-दुनिया में अपनी ऐसी छाप छोड़ी कि जमाना उन्हें दशकों, सदियों तक याद रखेगा।
लता जी असाधारण प्रतिभा की धनी थीं लेकिन उन्होंने साधारण जीवन जीया. उनका पहनावा, खान-पान, रहन-सहन सब कुछ साधारण था. लता ने कभी शादी भी नहीं की थीं. वे ताउम्र कुंवारी ही रही. लेकिन इसके बावजूद वे अपनी मांग को सिंदूर से सजाया करती थी. आख़िर लता दीदी किसके नाम का सिंदूर लगाती थीं.
लता जी किसके नाम का सिंदूर लगाती थी इसका जवाब खुद लता जी ने ही दिया था. एक बार स्वर कोकिला से जानी मानी कलाकार तबस्सुम ने इस संबंध में सवाल किया था. उन्होंने बताया था कि मैं जब थोड़ी बड़ी हो गई थी तो मैंने लता जी से पूछा था कि दीदी आप तो कुंवारी लता जी हैं, आपकी शादी तो हुई नहीं हैं. आप श्रीमती लगाती नहीं.
तबस्सुम को लता दीदी ने जवाब दिया था कि हां, मैं तो कुंवारी लता मंगेशकर हूं. इसके बाद तबस्सुम ने पूछा था कि, दीदी जो आपकी मांग में सिंदूर है, वो फिर किसके नाम का है ? लता जी का जवाब दिल जीतने वाला था. ‘भारत रत्न’ लता दीदी ने कहा था कि, संगीत के नाम का है. आप ही बताएं कि ये कितनी गहरी बात है.