99% लोगो को नहीं पता होगा के मंदिर की सीढ़ियों पर सिर क्यों टिकाते है?

Devotional

सिर ढकने की परंपरा हिंदू धर्म की परंपरा है। प्राचीन काल में सभी के सिर ढके होते थे इसके पीछे अलग अलग कारण है। इसका मतलब था कि हर एक प्रदेश का उधर के मौसम और भौगोलिक स्थितियों के अनुसार उधर का पोशाक होता था। राजस्थान, मालवा और निमाड़ के इलाकों में आज भी कई लोग सिर पर पगड़ी बांधते हैं। महिलाएं सिर पर स्कार्फ या पल्लू पहनती थीं। जब वे मंदिर जाते थे तो सभी का सिर ढका रहता था। लेकिन हम सिर ढकने या न ढकने का तीसरा वैज्ञानिक कारण भी बताएंगे और फिर कहेंगे कि क्या यह सच है?

हमारी पुरानी मान्यताओं के मुताबिक जिस व्यक्ति का आप सम्मान करते हैं उसके सामने आपको हमेशा अपना सिर नीचा रखना चाहिए। इसी वजह से कई महिलाएं आज भी अपने ससुराल में अपना सिर ढक देती हैं। ऐसा इसलिए है जब हम मंदिर जाते हैं तो सिर ढक कर जाते हैं।

सिर ढंकना भी सम्मान की निशानी माना जाता है, आज भी बहुत सी जगहों पर कुछ लोग पगड़ी को अपनी शान मानते हैं। पुराने समय में पगड़ी राजाओं के लिए यह सम्मान की निशानी थी। कुछ लोगों का मानना ​​है कि यदि आप मंदिर जाते हैं तो अपना घमंड और अभिमान आप प्रभु के चरणों में रख दे यानी अपना सिर खुला रखकर आप मंदिर में जाये।

हिंदू धर्म के अनुसार सिर के बीच में एक सहस्रार चक्र होता है जिसे ब्रह्म रंध्र भी कहा जाता है। हमारे शरीर में 10 द्वार होते हैं।- 2 नाक, 2 आंखें, 2 कान, 1 मुंह, 2 जननांग और सिर के बीच में 10वां द्वार होता है। आप परमात्मा से दसवें द्वार से ही रहस्योद्घाटन प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए मंदिर में पूजा या पूजा के दौरान सिर ढक कर रखने से मन एकाग्र रहता है।

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