आजादी से पहले महाराजा सयाजीराव गायकवाड ने 1892 में बिलिमोरा–वाघई नैरो गेज रेलवे लाइन लगवा कर इस ट्रेन की शुरुआत की थी। गायकवाड़ अपने विकास कामो के लिए आज भी जाने जाते हे, इस ट्रैन को शरू करने का गायकवाड का मुख्य उद्देश्य गरीब आदिवासी लोगों को इस ट्रेन के माध्यम से शहरी क्षेत्र के संपर्क में लाया जाये, जिस से वह बाहरी दुनिया के रीति–रिवाजों को जान सके और छोटे बडे वेपार कर सके। आजादी से पहले यानि १९४७ से पहले यह गायकवादी बरोडा रेल्वे के अधीन आता था, लेकिन बाद में इसे पश्चिम रेलवे में शामिल कर लिया गया था।
पिछले एक साल से यह ट्रेन बंध थी। जिसे ४ सितम्बर को फिरसे शरु किया गया हे। इस ट्रेन को वापस चलाने के लिए ११ करोड का खर्च था।जिसकी वजह से तह ट्रेन को बंध करने का फैसला लिया था। मगर स्थानिक लोगो के लिए यह ट्रेन बोहत महत्व रखती थी, यहा के लोगो ने और स्थानिक नेताओ ने मिल के इसको फिरसे शरु करने की मुहिम शरु की जिसके तहत ट्रेन को फिरसे चालु किया गया।
बिलिमोरा स्व यह ट्रेन १०.२० को निकलेगी और १.२० को वधाई पोहचेगी। यह ट्रेन की अहेमियत यहा के आदिवासी लोगों के लिए बोहत हे। उनको शहेर से उनके विस्तार तक जोड़ने वली ट्रेन की भारी कमी हे यहा बस सेवा भी थोड़ी कमजोर हे वेसे मे ट्रेन का यह सस्ता विकल्प उनके लिए बोहत ही लभदाई हे। कुच समय पहेले जब यह ट्रेन बंध की गई थी तो यहा के लोगो के लिए मुश्किले खडी हो गई थी। मगर अब इसे वापस शरु किया गया हे।
इस ट्रेन मे ४ कोच थे अब इसमें AC कोच भी लगाया गया हे, जिस से टूरिसम को बड़ावा मिल सके। यह ट्रेन गने जंगल से गुजरती हे जहा नदी, नाले, पहाड और वोटर फोल हे इस ट्रेन मेन सफर करना यानी कुदरत के और पास आना। जनरल टिक्केट जहा आपको ट्रेन मे ही मिल जाएगी वही ac कोच की टिकेट आपको IRCTC से बूक करवाना रहेगा।
जब १ साल बाद फिरसे यह ट्रेन चालु हुई तो हर गाव मे ट्रेन को रोक के उसका स्वागत किया गया, फूल बरसाए गए, पूजा आरती की गई। यह सब देखते ही बनता हे की यहा के लोगो के लिए यह ट्रेन कितनी जरुरी हे। यहा के लोगो की सादगी ने देखने वालो के दिल जित लिए।