१२ ज्योतिर्लिंग में से चमत्कारी ज्योतिर्लिंग यानि की मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग। जिसे श्रीशैलम नाम से भी जाना जाता है। आपको बतादे की भगवन कार्तिके दक्षिणी भारत मे भगवन मुरुगन के नाम से जाने जाते हे और उनके कही मंदिर मौजूद हे. आइये जानते हैं दक्षिण भारत के कर्नाटक में आए ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन की कहानी।
मल्लिकार्जुन मंदिर को दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है क्योंकि यह मंदिर कृष्णा नदी के किनारे शैल्य नाम के पर्वत की चोटी पर बना हुआ है। माना जाता है कि इस शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। यहां पर शिव और पार्वती की ज्योति है। मल्लिकार्जुन यानी मल्लिका शब्द माता पार्वती के लिए और अर्जुन शब्द भगवान शिव के लिए इस्तेमाल किया गया है। इसके अलावा यहां पर भगवान शिव की पूजा चमेली के फूलों से पूजा की जाती है चमेली को वहां की भाषा में मल्लिका कहते हैं इसलिए भी इस मंदिर को मल्लिकार्जुन के नाम से जाना जाता हे।
इस ज्योतिर्लिंग के पीछे रोचक कहानी है। माना जाता है कि भगवान शिव और पार्वती ने गणेश जी की शादी कुंभार पुत्री रिद्धि और सिद्धि से करवाई थी। जब यह बात कार्तिकेय को पता चली तो वह क्रोधित हो गए क्योंकि उनको शादी के बारे में कुछ भी पता नहीं था। माना जाता है कि भगवान कार्तिकेय भगवान शिव और पार्वती से रूठ के इसी जगह पर आकर बस गए थे और भगवान शिव और माता पार्वती कार्तिकेय को मनाने के लिए यहां पर आए थे। माना जाता है कि गणेश जी और कार्तिकेय के बीच में बहस छिड़ गई थी सबसे पहले शादी किसकी में होगी तब भगवान शिव ने यह शर्त रखी कि जो भी पृथ्वी की परिक्रमा सबसे पहले करके आएगा उसकी शादी सबसे पहली करवाई जाएगी।
भगवान कार्तिकेय के लिए यह आसान था क्योंकि उनका वाहन मोर था जबकि गणेश जी के लिए यह यात्रा बहुत मुश्किल होने वाली थी क्योंकि उनका वाहन चूहा था। प्रदक्षिणा करना शुरू किया तो गणेश जी ने भगवान शिव और पार्वती की प्रदक्षिणा की और कार्तिकेय पृथ्वी के साथ चक्कर लगाने में लग गए। भगवान शिव और पार्वती गणेश जी की यह चतुराई देखकर प्रसन्न हुए और गणेश जी की शादी कार्तिकेय से पहले करवाई गई जिससे कार्तिकेय रूठ गए। भगवान कार्तिकेय रूठ के जिस पर्वत पर गए थे उसी पर्वत पर भगवान शिव उनको मनाने के लिए शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए जिसको आज मल्लिकार्जुन के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव के इस लिंग को 12 ज्योतिर्लिंग में से एक माना जाता है। यहां पर शिवरात्रि तथा श्रावण मास में दर्शन का महत्व अधिक माना जाता है। यहां पर हजारों की तादाद में भक्त गण भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं और अपने आप को पाप से मुक्त पाते हैं।