यह बात द्वितीय विश्व युद्ध की हे जब हिटलर की सेना एक के बाद एक यूरोप के देशो पर कब्जा किये जा रहे था औरजब हजारो लोग मरे जा रहे थे तब भारत के एक राजा ने आगे आके पोलैंड के लोगो को शरण दी थी. आज कुछ ऐसा ही माहौल बना हुआ हे. रूस के सैन्य हमलो के बीच यूक्रेन से भाग रहे भारतीयों के लिए उक्रैन का पडोसी देश पोलैंड मदद के लिए आगे आ रहा हे। पोलैंड में उन्हें आवास और आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है और वही से उन्हें भारत सर्कार के द्वारा भारत लाया जा रहा हे.
आज जो हालत से भारतीय छात्र गुजर रहे हे उसी हालत मे कभी पोलैंड के लोग थे वोर्ल वॉर २ के वक्त भारत ने सैकड़ों पोलिश बच्चों को शरण दी थी. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जामनगर साम्राज्य के महाराजा दिग्विजय सिंहजी जडेजा थे। पोलैंड से भागे महिला और बच्चो को जर्मनी और रूस हमले के खिलाफ असहाय थे कहा जाता हे के पोलैंड से बच्चो और महिलाओ से भरे जहाज कही देशो मे घूमते रहे मगर उनको कही शरण नहीं मिले हर कोई देश हिटलर से डर रहा था और उसके खिलाफ नही जाना चाहता था। ऐसे वक्त मे पोलैंड के इन लोगो को भारत के और रुख किया।
कहा जाता है कि युद्ध में अनाथ हुए लगभग 1000 पोलिश बच्चों को महाराजा दिग्विजय सिंह ने न केवल आश्रय दिया, बल्कि उन्हें एक पिता की छत्र चाय भी महसूस नही होने दी। पोलिश सरकार ने मरणोपरांत महाराजा दिग्विजय सिंह को उनके सर्वोच्च नागरिक सम्मान, कमांडर्स क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मेरिट से सम्मानित भी किया था।
जब जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण किया था,तब जर्मन तानाशाह हिटलर और सोवियत रूसी तानाशाह स्टालिन के सोवियत सैनिकों ने पोलैंड पर आक्रमण किया जिसमे हजारो सैनिक मारे गए और बड़ी संख्या में बच्चे अनाथ हो गए। उन बच्चों को शिविर में बेहद अमानवीय परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर किया गया फिर चर्च की मदद लेके उन बच्चो को और महिलाओ को वह से निकल के भारत लाया गया तब महाराजा दिग्विजय सिंह ने उनको हर जरुरी चीज मुहैया करवाई.
महाराजा दिग्विजय सिंहजी ने जामनगर से 25 किमी दूर बलाचडी गांव मे शरण दी थी। महाराजा ने बच्चो को आश्वासन दिया कि अब से वह उनके पिता होगे और बिना हिचकिचाहट के आप उन्हें मिल सकते हे और कुछ चाहिए तो मांग भी सकते हे. प्रत्येक बच्चे को नर्सरी में एक अलग बिस्तर दिया गया, जहां उन्हें खाने-पीने, कपडे और स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ-साथ खेलने के लिए सुविधाएं भी उपलब्ध कराई गईं। पोलैंड के बच्चों के लिए एक फुटबॉल कोच भी रखा गया था। ताकि ये बच्चे खुद को अलग न समझे, पुस्तकालय बनाया गया और वहां पोलिश किताबें रखी गईं। पोलिश त्योहार भी बहुत धूमधाम से मनाए जाते थे। इन सभी खर्चों का वहन महाराजा ने किया था। उन्होंने पोलैंड से इसके लिए भुगतान करने के लिए कभी नहीं कहा।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इन बच्चो को पोलैंड वापस भेज दिया गया और जब बच्चो ने राजा की दरियादिली और म्हणता की बाटे वह सुनाई तो पोलैंड राजा के अहसानो को आज भूल पाया. पोलैड में महाराजा का सम्मानपोलैड की सरकार ने दिग्विजय सिंह के नाम पर राजधानी वारसो मे एक मार्ग का नाम रखा। हालाँकि, महाराजा की मृत्यु 20 साल पहले 1966 में हुई थी. पोलैड ने महाराजा को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान, कमांडर्स क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मेरिट से भी सम्मानित किया है।
2013 में पोलैंड से नौ बुजुर्गों का एक दल बलाचडी आया था। इन सभी ने अपने बचपन के पांच साल यहीं बिताए। यहां आए लोग भावुक हो गए। वे जिस पुस्तकालय में पढ़ते थे, वह अब सैनिक स्कूल में तब्दील हो गया है। इधर उनकी नजर उनकी याद में बने खंभे पर पड़ी और सभी की आंखों से आंसू बहने लगे. भारत में क्रिकेट रणजी ट्रॉफी का नाम महाराजा दिग्विजय सिंहजी जडेजा के पिता महाराजा रणजीत सिंहजी जडेजा के नाम पर रखा गया है। रंजीत सिंहजी एक पेशेवर क्रिकेटर थे। आज जब भारत के छात्र भी युद्ध के माहौल मे गिरे हुए तो पोलैंड की जनता को राजा के अहसानो को यद् करते हुए भारतीय छात्रो की हर संभव मदद करनी चाहिए.