Friendship day – मित्रता का सही मतलब सीखना हो तो, श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता को जाने

Devotional

1 अगस्त को पूरा विश्व मित्रता दिवस के तौर पर मनाता है। आज ही के दिन लोग अपने पुराने एवं दिल के करीब सखा को फोन में या मिलकर अपने पुराने दिनों को याद करते हैं। कुटुम मां-बाप या परिवार चुनना आपके बस की नहीं है पर मित्रता एक ऐसी चीज है जो आप खुद के लिए तय करते हैं। मित्रों ही होते हैं जो मुश्किल से मुश्किल घड़ी में भी अपने मित्र की मदद के लिए खड़े रहते हैं। सच्चा मित्र सगे भाई से कम नहीं होता। आज कलयुग में सच्चा, अच्छा मित्र ढूंढना कोयले की खान में हीरा ढूंढने बराबर हे। आज के मित्र अपने निजी स्वार्थ को साधने के लिए आपसे मित्रता करते हैं, तो कहीं मित्र आपके पास रही धन दौलत की लालच में मित्रता करते हैं। ऐसे मित्र कही बार वरदान नहीं पर श्राप बन जाते हैं। अगर पूरे विश्व को मित्रता का सही मतलब किसी ने सिखाया है तो भगवान कृष्ण है, मित्रता का सही मतलब भगवान कृष्ण ने सुदामा और अर्जुन के माध्यम से पूरे संसार को बताया है। आइए जानते हैं मित्रता का सही मतलब।

सुदामा आर्थिक तंगी में जी रहे थे। उनकी पत्नी उनसे बताते हैं कि तुम्हारा मित्र एक बहुत ही बड़ा राजा है और तुम तो पूरे दिन उसी के गुणगान गाते हो मगर क्या तुम्हारे मित्र को तुम्हारे रत्ती भर भी पढ़ी नहीं कि तुम्हारी हालत ऐसी होते हुए भी वह तुम्हारी कोई मदद करने नहीं आया। तुम्हें तुम्हारे मित्र को मिलने जाना चाहिए और अपने लिए कुछ मांग के आना चाहिए जिससे हमारे जीवन में थोड़ी खुशहाली आए। सुदामा को कृष्ण से मिलना जरूर था पर अपने लिए कुछ मांगने के लिए नहीं सुदामा ने बीवी के ताने सुन सुन के तंग आकर एक दिन तय किया कि वह कृष्ण से मिलने के लिए जाएंगे। सुदामा ने एक झोली में रोटी और चावल बनाकर कृष्ण के लिए रखी और कृष्ण की नगरी की तरफ चल पड़े। सुदामा कृष्ण के लिए तोहफे के रुप में विश्वास, प्रेम, करुणा और मित्रा स्नेह की टोकरी भर के जा रहे थे। पूरे रास्ते सुदामा को एक डर सता रहा था कि मेरी ऐसी हालत देखकर कृष्णा मेरे बारे में क्या सोचेंगे क्या मुझे इतने बड़े राजा से मिलने जाना चाहिए? क्या कृष्णा मुझसे मिलेंगे भी या नहीं? सुदामा चलते-चलते कृष्ण नगरी पहुंचते हैं कृष्ण नगरी के द्वारपाल सुदामा को दरवाजे पर ही रुकते हैं। द्वारपाल को सुदामा कहते हैं कि द्वारका पति कृष्णा को बताओ कि उनका मित्र उनसे मिलने आया है। द्वारपाल सुदामा को देख आश्चर्य में होता है कि ऐसी हालत में भगवान कृष्ण का मित्र कैसे हो सकता है। सुदामा फिर से द्वारपाल को बताते हैं कि श्री कृष्ण तक संदेशा भिजवाओ उनका मित्र सुदामा उनसे मिलने आया है अगर वह मना करते हैं तो मैं यहीं से वापस लौट जाऊंगा। द्वारपाल संदेश लेकिन कृष्णा के पास जाते है कृष्णा महल के खूबसूरत हिस्से में आराम फरमा रहे हैं वहीं उनकी आठ रानियां उनकी सेवा में लगी हुई होते हैं। द्वारपाल जब बताता है कि सुदामा करके कोई फटे कपड़ों में ग्रामीण द्वार पर खड़ा है और वह बता रहा है कि वह आपका सखा है मुझे इस बात पर विश्वास नहीं हुआ तो मैंने उसको अंदर नहीं आने दिया और यह संदेशा में आपके पास लेकर आया। इतना सुनते ही जानू कृष्ण की नींद उड़ गई हो कृष्णा अपनी जगह से उठे और द्वारका के दरवाजे की तरफ भागते हैं, सुदामा का नाम सुनते ही कृष्णा की आंखें पानी से भर जाती है कृष्णा को बच्चे की तरफ भागते हुए देखकर रानियां एवं वहां खड़े लोग आश्चर्य में पड़ जाते हैं की एक राजा इस तरह किसी को मिलने के लिए कैसे भाग सकता है।

जहां एक तरफ फटे कपड़ों में दरिद्र हालत में सुदामा खड़े थे तो दूसरी तरफ हीरे, मानिक, मोती से सुसज्जित कृष्ण थे। दोनों ही एक दूसरे को देख कर गले लग जाते हैं और दोनों की ही आंखों से अश्रु की धारा शुरू हो जाती हैं। पूरा द्वारका जैसे मित्रता को देख के अचंभित था। कृष्णा सुदामा को अपने साथ महल के अंदर लेकर आते हैं। द्वारका की रोनक देखकर सुदामा के पांव कांपने लगते हैं की लोग यह न कहे कि द्वारका के राजा का मित्र ऐसी हालत में कैसे हो सकता है। सुदामा के मन में हजारों विचार दौड़ने लगते हैं कि कहीं मैंने यहां आकर गलती तो नही कर ली? मगर कृष्णा जैसे मित्र प्रेम में पागल हो गए हो वैसे सुदामा का हाथ पकड़कर महल का कोना कोना घुमा रहे होते हैं। श्री कृष्ण सुदामा को अपने आसन में बिठाते हैं और माना जाता है कि श्री कृष्ण अपने अश्रु धार से ही सुदामा के पाव धो देते हैं। सुदामा के हाथ में फटी जोली देख श्री कृष्णा बोलते हैं कि सुदामा यह जोली में मेरे लिए तुम क्या लाए हो। महल की रौनक देखकर सुदामा संकोच में रहते हैं कि जोली मे लाया हुआ चावल और रोटी श्री कृष्ण को भेट करना सही रहेगा या नहीं सुदामा कुछ नहीं बोलते कृष्णा सुदामा से जोली छीन लेते हैं और वह खोलते हे और उसमे चावल और सुखी रोटी होती है। कृष्ण जैसे 32 पकवान खा रहे हो, खुशी के साथ सुदामा की लाई हुई सूखी रोटी और चावल खाते हैं। सुदामा कुछ समय बाद द्वारका से वापस लौट रहे होते हैं अपने घर की तरफ और मन में सोच रहे होते हैं कि कृष्णा के पास पूरी दुनिया की दौलत मौजूद है उसने पूरे सत्कार के साथ मेरा सम्मान किया मित्रता निभाई, मगर मेरी ऐसी हालत देख कर भी उसे एक बार ऐसा ना हुआ कि मेरे को वह आर्थिक रूप से थोड़ी मदद कर दे! सुदामा यही सब बातें सोचते सोचते अपने घर की तरफ जाते हे। जब वह अपने गांव पहुंचते हैं तो वह देखते हैं कि उनकी टूटी हुई झोपड़ी एक विशाल महल में बदल चुकी होती है। उनकी पत्नी जो फटी हुई पुरानी साड़ी में थी वह सोलह सिंगार के साथ हीरो से बने हार अपने गले में पहन के बाहर आती है। यह सब देख कर सुदामा टूट जाते हैं कृष्ण भक्ति और कृष्ण मित्रता में डूब जाते हैं। सुदामा और कृष्ण की मित्रता के आगे सारी मित्रता फीकी हे। मित्र धर्म कैसे निभाना चाहिए यह बखूबी कृष्ण और सुदामा ने पूरे संसार को बताया हे।

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