आज देश में महिलाए हर क्षेत्र में देश के पुरुषो से कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही है। हमारे देश में ऐसे बहुत सारे क्षेत्र थे जिसमे सिर्फ पुरुषो का वर्चस्व ही होता था , लेकिन जैसे जैसे समय बढ़ता रहा महिलाए भी ऐसे क्षेत्रों में आती रही है। ऐसा ही एक नौकरी है कंडक्टर की जहा आज से कुछ सालो पहले सिर्फ पुरुष की काम करते थे लेकिन आज महिलाए भी बतौर कंडक्टर काम करती है।
एक ऐसी महिला कंडक्टर है शिप्रा दीक्षित जो के उत्तर प्रदेश परिवहन निगम गोरखपुर डिपो में बस कंडक्टर की नौकरी करती हैं। वैसे तो उन्हें इस नौकरी से कोई शिकायत नहीं, लेकिन इन दिनों उन्हें अपनी पांच महीने की बच्ची को गोद में लेकर रोज 165 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। इसकी वजह ये है कि विभाग के सीनियर अधिकारियों ने शिप्रा की चाइल्ड केयर लीव (CCL) की अर्जी ठुकरा दी।
महिला को बस में छोटी बेटी को गोद में लेकर टिकट काटना पड़ता है। वह चाहकर भी भूखी बच्ची को दूध नहीं पीला पाती है। महिला की यह हालत देख कई बार यात्री तरस खाते हैं, लेकिन विभाग के आला अफसर को दया नहीं आती। वे महिला की छुट्टी मंजूर नहीं करते हैं। बस में हवा लगने से कई बार बच्ची की तबीयत भी बिगड़ चुकी है। लेकिन इसके बावजूद महिला को छुट्टी नहीं दी जा रही है।
शिप्रा के घर बच्चे को संभालने वाली कोई दुसरी महिला नहीं है। यही वजह है कि उन्हें अपनी 5 माह की मासूम बच्ची को रोज़ लेकर ड्यूटी पर आना पड़ता है। शिप्रा दीक्षित के पिता पीके सिंह यूपी परिवहन निगम में बस कंडक्टर थे। पिता के निधन के बाद साल 2016 में शिप्रा अनुकंपा नियुक्ति के तहत यह नौकरी मिली थी। उनके पिता परिवहन निगम में सीनियर एकाउंटेंट थे। बेटी ने भी साइंस से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रखा है। लेकिन उन्हें उनकी योग्यता के अनुसार पद नहीं दिया गया।