प्रयागराज में स्थित है एक ऐसा शक्तिपीठ मंदिर जहां माता सती का हाथ गिरकर हो गया था अदृश्य,नवरात्र में होती है विशेष ?

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नवरात्रि के समय देवीओ की पूजा अर्चना करने का हमारे हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। हमारे हिन्दू धर्म के अनुसार कुल 51 शक्तिपीठ है। जिसमे में एक शक्तिपीठ प्रयागराज में आलोपी बाग में स्थित शक्तिपीठ मां आलोपशंकरी देवी का मंदिर अटूट आस्था का केंद्र है.क्योंकि यह देश के अलग-अलग स्थानों में मौजूद 51 शक्तिपीठों में से एक है। 51 शक्तिपीठों में यह 18वां शक्तिपीठ है। नवरात्रि में प्रतिदिन हजारो श्रद्धालु मां आलोपशंकरी के दर्शन करने आते हैं। मान्यता है कि यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है।

देवी पुराण में वर्णित 51 शक्तिपीठो में अलोपशंकरी 18वां शक्तिपीठ है। मंदिर के महंत रामसेवक गिरि ने बताया कि जब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से शिवप्रिया सती के शरीर के टुकड़े किए थे। उसी दौरान माता सती के दाये हाथ की उंगली प्रयाग की धरती पर गिर कर अदृश्य यानि अलोप हो गई था। इसी कारण मंदिर का नाम अलोपशंकरी पड़ा।

मंदिर में माता सती की कोई मूर्ति नहीं है। बल्कि एक चबूतरे के बीच में कुंड बना हुआ है। उस कुंड मंे जल भरा है। यह जल काफी चमत्कारी माना जाता है। कुंड के ऊपर पालना यानि झूला है। जो लाल रंग के कपड़े से ढका हुआ है। कुंड का जल लेकर भक्त पालने पर डालते हैं। साथ ही बच्चों के शरीर पर भी इस चमत्कारी जल को लगाया जाता है। मान्यता है कि इस जल को शरीर पर लगाने से कई असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं। श्रद्धालु इस पालने को छू कर माता का आर्शीवाद लेते हैं। ऐसी मान्यता है कि अलोपशंकरी मंदिर मंें भक्तों द्वारा मंागी गई हर इच्छा पूरी होती है।

यहं माता को नारियल, फूल, सिंदूर सहित अन्य पूजा की सामग्री का चढ़ावा चढ़ता है। शक्तिपीठ होने के कारण यहां प्रतिदिन सैंकड़ो लोग माता का आर्शीवाद लेने आते हैं। सोमवार और शुक्रवार को मंदिर में विशेष मेला लगता है। इसी मंदिर में नवदुर्गा भी स्थापित हैं। नवरात्रि में मां अलोपी का श्रृंगार तो नहीं होता लेकिन यहां माता के दर्शन के लिए सुबह से ही हजारो श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगी रहती है। माता के स्वरूपों के गीत संगीत के भव्य कार्यक्रम होते हैं।

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