दिल्ली: पेड के नीचे पढने वाले बच्चों के लिए बनी बांस की स्कूल, आसानी से हो सकती हे कही भी शिफ़्ट, जाने इसकी विशेषता।

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अगर आज देश को सबसे ज़्यादा किसी चीज की ज़रूरत हे तो वो हे शिक्षित युवा, आजादी के इतने साल बाद भी भारत मे गरीबी, रोजी रोटी की जन्तो जहेत यु की यु ही खडी हे। भारत के ज्यादातर शहेरो मे हमे छोटे बच्चे कचरा उठाते तो भीख मंगते या छोटी दुकानो पर काम करते दिखाई पडते हे। भलड़ फिर भारत मे मुफ्त शिक्षा हो या शिक्षा के साथ भोजन दिया जाता हो पर हज़ारो लक्खो बच्चे ऐसे हे जो आज भी शिक्षा से अछूटे रह जाते हे.

कहा जाता हे न जब इच्छाशक्ति सकारात्मक हो तो उसे कोई नहीं रोक सकता, आज का किस्सा कुछ ऐसा ही हे. जाने दिल्ली के युवाओं ने कैसे बदल दी बस्ती के गरीब बच्चो की तक़दीर। दिल्ली के यमुना खादर की जुग्गी मे बसी कही परिवारों के बच्चे स्कूल से अछुटे थे. कुछ साल पहले एक भले इंसान ने बच्चो को यहाँ पढाने का भगीरथ काम किया। उनके साथ धीरे धीरे कुछ युवान भी जुड़े पहले वह एक छोटे से रूम मे बाद मे पेड के निचे बच्चो को पढ़ाया जाता था. पर पेड़ के निचे कब तक बच्चो को पढाया जाये। कभी बारिश तो कभी धुप बच्चो को समय से पढ़ाना मुश्किल होता जा रहा था.

यह बात युवान बच्चे समाजसेवी लोगो के पास लेके गए. उनको भी युवाओ की बात अच्छी लगी और न्यायलय में याचिका दायर की गई, और कुछ ही समय में वहा पे अस्थायी स्कूल बनाने की पेर्मिशन मिल गई. आधा काम हो गया था पर अस्थाई स्कूल बनाना आसान काम तो था नहीं. फिर कुछ और युवा जुड़े जिन्होंने बांस की स्कूल बनाने का सुझाव दिया, फिर क्या था युवा, गरीब बच्चो के लिए जुट गए.

कुछ ही समय मे युवाओं ने स्कूल बनाके खड़ा कर दिया. ३० से ४० वोलेंटियर ने मिल के कुछ ही हफ्तों में सुन्दर स्कूल बना दिया. यह स्कूल का नाम समग्र शिक्षा केंद्र रखा गया. इस स्कूल में युवा बच्चो को पढाने आते हे. अभी ५० से भी अधिक बच्चे यहा पढने आते हे. इस अब गर्मी और बारिश से बचा जा सकता हे वही इस स्कूल को एक जगह से दूसरी जगह भी आसानी से शिफ्ट किया जा सकता हे. इसका मेंटेनेंस भी बोहत कम हे. ऐसे युवायो को हमारे सलाम। शिक्षा ही देश की सूरत बदल सकते हे. यही बच्चे कल जाके देश का नाम रोशन करेंगे.

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