तो यह 5 बड़ी वजहों से रशिया और यूक्रेन के बीच बढ़ने लगा तनाव गर्मा गर्मी इतनी बढ़ गई के युद्ध हो गया !

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गुरुवार सुबह रूस ने यूक्रेन पर युद्ध की घोषणा कर दी है। लेकिन क्या आपको पता है के युद्ध किन वजहो से हो रहा है। क्या दोनों देशो के बीच अभी ही तनाव शुरू हुआ था ? इस लेख में आपको रूस और उक्रेन के बीच हुए तनाव के सभी मुख्य कारण बतायेंगे। खबरों के अनुसार उक्रेन और रशिया के बीच हुए इस तनाव के मुख्य 5 कारण हो सकते है।

1.वर्ष 2014 का विद्रोह

वर्ष 2013 के आखिर में यूक्रेन में एक विद्रोह शुरू हुआ, जिसे रिवोल्यूशन ऑफ डिग्निटी के तौर पर जाना जाता है। इसे मेडन रिवोल्यूशन भी कहा जाता है। इसकी मुख्य मांग थी रूस समर्थक राष्ट्रपति विक्टर यांकोविच को सत्ता से हटाकर उनकी सरकार को उखाड़ फेंकना. दरअसल यांकोविच यूरोपीय यूनियन से जुड़ने और फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर दस्तखत करने से मना कर चुके थे. बस इसके विरोध में पूरे देश में असंतोष शुरू हो गया. जगह जगह हिंसा, प्रदर्शन और पुलिस से टकराव शुरू हो गए. 130 से ज्यादा लोग इसमें मारे गए. 18 पुलिस अफसरों की भी जान गई।

वर्ष 2014 में यूक्रेन की राजधानी कीव में इकट्ठा वो भीड़, जिसने रूस समर्थित यांकोविच की सरकार को उखाड़ फेंका. (विकी कामंस) आखिरकार ये विद्रोह तब थमा जबकि तत्कालीन राष्ट्रपति यांकोविच और संसद में नेता विपक्ष के बीच एक समझौता हुआ. इसके अनुसार, नया चुनाव कराया जाएगा और चुनाव होने तक एक अंतरिम एकीकृत सरकार कामकाज संभालेगी।

इस समझौते के अगले ही दिन यांकोविच बगैर संसद का सामना किए देश छोड़कर रूस भाग गए. संसद में इस प्रस्ताव को बहुमत से पास किया गया और यांकोविच को उनके पद से हटा दिया गया. ना तो यांकोविच से इसे माना और ना ही रूस को ये सब रास आया. बकौल रूस, ये कदम अवैध था।

2. सोवियत खेमे से देशों के पाला बदलने से नाराजगी

सोवियत संघ के टूटने के बाद एक एक करके कई पूर्व सोवियत देशों ने पाला बदला. कई यूरोपीय यूनियन में शामिल हो गए और कई ने नाटो की भी सदस्यता ले ली. इसमें वो बाल्टिक देश भी थे। जो एक जमाने में सोवियत संघ की कम्युनिस्ट सरकार के इशारों पर नाचते थे। ऐसे हर कदम को रूस अपने ऊपर बढ़ते खतरे के तौर पर देख रहा था. यूक्रेन भी चाहता था कि वो रूस, यूरोपीयन यूनियन और नाटो के बीच संतुलन साधे रखने की बजाए अपना भविष्य यूरोपीय यूनियन और नाटो के साथ देखे।

3.रूस को लग रहा था कि उसे घेरा जा रहा है

वर्ष 2004 में चेक गणराज्य, एस्तोनिया, हंगरी, लातविया, लिथुआनिया, पोलैंड और स्लोवाकिया यूरोपीय यूनियन ज्वाइन कर चुके थे। इसके बाद 2007 में बुल्गारिया और रोमानिया ने भी ऐसा ही किया. रूस को लग रहा था कि अगर यूक्रेन ने भी ऐसा कर लिया उसके चारों ओर काला सागर के साथ एक नई दीवार खड़ी हो जाएगी और उसे घेर लिया जाएगा. यहां पर ये जानना जरूरी है कि रूस के पड़ोसी दक्षिण कोरिया और जापान पहले से ही अमेरिका के खास सहयोगी हैं। ये सब रूस को नागवार गुजरा. इसी वजह से उसने यूक्रेन में दोनेत्स्क और लुहांस्क में विद्रोहियों को मदद देना शुरू किया।

4. वर्ष 2019 में यूक्रेन में संविधान में बदलाव

वर्ष 2019 में यूक्रेन ने संविधान में बदलाव करके देश को रणनीतिक तौर पर यूरोपीय यूनियन और नाटो सदस्यता के करीब ला दिया. इसके विरोध में वर्ष 2021 और 2022 में रूसी सेनाएं बॉर्डर पर आ डटीं और दोनों देशों में तनाव शुरू हो गया। इस पूरे मामले में अमेरिका भी बीच में कूद गया। अमेरिका ने ना केवल यूक्रेन को मदद की पेशकश की बल्कि हथियार भी देने शुरू कर दिए।

5. यूक्रेन को अपने असर में रखने का हठ

बेशक अब यूक्रेन जिस जगह खड़ा है, उसमें वो रूस के हाथों से निकल ही चुका है लेकिन पुतिन कतई नहीं चाहते कि ये देश उनके प्रभाव से बाहर निकले. इसी वजह से पहले तो उन्होंने यूक्रेन के एक हिस्से क्रीमिया को जबरन रूस में मिलाया तो उसके बाद अब दोनेत्स्क और लुहांस्क को आजाद घोषित कर उसे मान्यता भी दे दी. कुल मिलाकर मामला ये है कि पुतिन को लग रहा है कि अगर यूक्रेन नाटो की ओर गया तो फिर रूस के पड़ोस में एक ऐसा देश बढ़ जाएगा, जो नाटो और अमेरिका के असर में होगा और वो उसके लिए असहज स्थिति होगी।

हकीकत ये हो गई है कि यूक्रेन में अब रूस और पुतिन से सबसे ज्यादा घृणा की जाती है।यूक्रेन की सरकार ऐसी सरकार है, जिसको रूस फूटी आंखों देखना नहीं चाहता, वो इसे अमेरिकी असर वाली सरकार मानता है।

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