अपमान का बदला लेना है तो रतन टाटा से सीखिये कैसे फोर्ड से नौ साल बाद टाटा ने लिया ऐसे बदला के

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यह 1998 की बात है जब रतन टाटा ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट को मार्केट में उतार था। टाटा ग्रुप ने अपनी पहली हैचबैक कार इंडिका लॉन्च की थी। रतन टाटा को इससे बहुत उम्मीदें थीं लेकिन अफसोस कि ये कार लोगों को आकर्षित ना कर पाई और इसे लेकर कंपनी को निराशा झेलनी पड़ी। टाटा ग्रुप के अन्य मेंबर्स ने चेयरमैन रतन टाटा को यह सलाह दी कि वह इस प्रोजेक्ट को बेच दें। सबकी यही सलाह थी कि इसे फोर्ड के हाथों बेचा जाए।

फोर्ड कंपनी से बात हुई और उनके ऑफिसर्स टाटा के हेडक्वॉर्टर बॉम्बे हाउस भी आए। उन्होंने टाटा के कार डिपार्टमेंट को खरीदने में रुचि दिखाई और इसके बाद फोर्ड द्वारा रतन टाटा को चर्चा के लिए अमेरिका के डेट्रॉयट बुलाया। यह साल 1999 था जब रतन टाटा को अपमान के रूप में अपने जीवन की एक नई सीख मिली। रतन टाटा और उनकी टीम टाटा ग्रुप का नया ऑटोमोबिल बिजनस बेचने फोर्ड कंपनी के पास डेट्रॉयट पहुंच गई।

फोर्ड के ऑफिसर्स भारत आ कर टाटा के कार डिपार्टमेंट को खरीदने में दिलचस्पी दिखा गए थे इसीलिए टाटा ग्रुप के लोग इस बात से निश्चिंत थे लेकिन उन्हें क्या पता था कि फोर्ड का उन्हें डेट्रॉयट बुलाने का मकसद कुछ और ही था। फोर्ड के ऑफिसर्स के साथ रतन टाटा और अन्य टॉप ऑफिसर्स की बैठक में फोर्ड द्वारा कहा गया कि “जब आपको इस बारे में कुछ पता ही नहीं था, तो आपने पैसेंजर व्हीकल सेगमेंट में कदम रखा ही क्यों ?” फोर्ड यहीं नहीं रुका बल्कि उसने आगे कहा कि वे टाटा मोटर्स के कार बिजनस को खरीद तो रहे हैं लेकिन ये उनके ऊपर फोर्ड का अहसान होगा।

फोर्ड का ये रवैया रतन टाटा को बिलकुल पसंद नहीं आया। वह अपमान का घूंट पी कर रह गए तथा इस डील को बीच में ही छोड़ कर अपनी टीम के साथ उसी शाम न्यू यॉर्क लौट आए।इस घटना ने रतन टाटा को बेहद उदास कर दिया। कोई और होता तो फोर्ड से बदला लेने के लिए उसे नीचा दिखाने की तरकीब सोचता लेकिन रतन टाटा औरों से अलग थे उन्होंने बदले की भावना में समय गंवाने से ज्यादा जरूरी समझा अपनी कमियों को सुधारना। उन्होंने अपने कार सेगमेंट को बेचने का विचार बदल दिया और अब अपना पूरा ध्यान अपने कार बिजनेस में लगाने लगे. धीरे धीरे उनकी मेहनत रंग दिखाने लगी।

कहते हैं समय पहिये के समान घूमता है और इस तरह वह खुद को दोहराता रहता है। रतन टाटा की मेहनत ने टाटा मोटर्स को सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया। एक तरफ टाटा ग्रुप की टाटा मोटर्स कामयाब हो रही थी तो वहीं 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान फोर्ड कंपनी दिवालियापन की स्थिति में आ गई। ऐसी स्थिति में रतन टाटा के पास फोर्ड को नीचा दिखाने का बहुत बेहतरीन मौका था लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। बल्कि उसके विपरीत उन्होंने फोर्ड की मदद ही की।

दरअसल साल 2008 में ही टाटा मोटर्स ने फोर्ड से जैगवार तथा लैंड-रोवर ब्रैंड (जेएलआर ब्रैंड) को 2.3 अरब डॉलर में खरीद लिया। टाटा मोटर्स की फोर्ड के साथ ये डील उनके लिए जीवानदायिनी सौदा साबित हुई। टाटा मोटर्स की इस उदारता पर फोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन बिल बोर्ड ने टाटा को धन्यवाद देते हुए कहा था कि ‘आप जेएलआर को खरीदकर हम पर बड़ा अहसान कर रहे हैं.’ उनकी इस बात पर खूब तालियां बजी थीं।

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