श्रवण का पवित्र महीना यानी भोलेनाथ को समर्पित महीना। सावन के महीने में भोलेनाथ की भक्ति की जाती है कहीं लोग उपवास करते हैं, विधि विधान से पूजा पाठ करते हैं, कुछ लोग , और इस महीने की हुई तपस्या एवं भक्ति से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं। सावन के महीने में भोलेनाथ के मंदिरों में दर्शनार्थियों की भारी भीड़ रहती है। श्रावण के हर सोमवार को लोक भोलेनाथ को दूध पानी जय आदि शिवलिंग पर चढ़ाते हैं और द थोड़ा बिल्ली जैसे पत्थरों से भोलेनाथ की पूजा करते हैं। जैसा कि सर्व हिंदू समाज जानता है भोलेनाथ का ऐसा मंदिर जहां दर्शनार्थियों की भीड़ हमेशा मौजूद रहती हैं वह है महाकालेश्वर। जो काल को भी लोग थे वह महाकाल भोलेनाथ में समय को भी रोक नहीं सकती हैं।
यह बात तो दिन पुरानी है जब रात को 10:00 बजे भोलेनाथ से मिलने पहुंचे नागदेव। नाग भोलेनाथ का आभूषण, भोलेनाथ नागदेव को अपने गले में विराजमान करते हैं महाकाल के मंदिर में रात को 10 बजे जब मंदिर के कुछ पुजारी और सुरक्षाकर्मी मौजूद थे तब नागदेव भोलेनाथ से मिलने पहुंच गए। वहां मौजूद लोगों ने बताया कि नागदेव को देखते ही लोगों में एक आश्चर्य फैल गया और सब लोग एक ही धुन में जय महाकाल के नारे लगाने लगे। नागदेव ने भोलेनाथ के दर्शन किए और उसके बाद बीएसएफ जवान ने नागदेव को पकड़कर एक सुरक्षित जगह पर छोड़ दिया।
माना जाता है कि नागदेव को ऐसे वक्त पर देखा गया जाना श्रद्धालुओं का मंदिर परिसर में आने दिया नहीं जाता। यह अच्छा है कि श्रद्धालु नहीं थे तब नागदेव मंदिर में आए वरना भगदड़ मच सकती है जिससे कई लोग जख्मी भी हो सकते हैं। श्रावण के महीने में संयोग ही हे की नाग मंदिर परिसर में पांच गए।
जैसा कि आपको पता ही होगा भगवान शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है। समुद्र मंथन में जब जहर समुंदर से निकला तो कोई उसे पीने के लिए तैयार नहीं था, तब समग्र सृष्टि के कल्याण के लिए भगवान शिव ने यह जहर पी लिया और उसके बाद उसको गले तक रोकने के लिए भगवान शिव ने नाग देवता को अपने गले में विराजमान किया जहर की वजह से भगवान शिव का गला नीले रंग का हो गया जिससे वह नीलकंठ कहलाए।