नासा ने दी चेतावनी! धरती कि और आ रहा है बोहत बडा एस्टेरॉयड, जाने कब गुजरेगा पृथ्वी के पास से

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अंतरिक्ष की दुनिया अनंत रहस्य से भरी हुई है। यहां हर रोज कहीं तारे बनते हैं तो कहीं तारे नष्ट हो जाते हैं। यहां कितने ग्रह कितने तारे मौजूद है आज तक कोई पता नहीं लगा सका अंतरिक्ष की दुनिया अनंत मानी जाती है। अंतरिक्ष के बारे में भारत की इसरो और अमेरिका के नासा जैसे संगठन अवकाश का अध्ययन करते रहते है और भविष्य में आने वाला खतरे के बारे में पता लगाते रहते हैं। अवकाश में कहीं एस्ट्रॉयड यहां कहे तो उल्कापिंड बड़े तारों से टूट के पृथ्वी के नजदीक से गुजरती रहती है। ज्यादातर एस्ट्रॉयड धरती के गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से जलकर राख हो जाती है। मगर कुछ उल्कापिंड बड़ी होती है जो नष्ट होने में असमर्थ होती है और पृथ्वी तक गिर जाती हैं। किसी भी ग्रह के विनाश की सबसे बडी वजह भी  अस्ट्रॉयड को माना जाता है। अगर ऐसे ही बडे उल्कापिंड का मार किसी ग्रह पर पढ़ता रहे तो वह ग्रह नाश हो सकता है।

नासा ने हाल ही में ऐसे ही एक एस्ट्रॉयड पृथ्वी से नजदीक गुजरने के लिए चेतावनी दी है। इसका साइज एक बहुत ही बड़ी बिल्डिंग या कहे तो एआईफिल टावर से भी ब बडी साइज का माना जा रहा है। नासा ने बताया कि या स्ट्राइड दिसंबर में पृथ्वी के करीब से गुजरेगा इस उल्कापिंड का नाम उन्होंने 4660 Nereus दिया है। नासा का मानना है कि यह अगर पृथ्वी के नजदीक आ जाता है और तब तक नष्ट नहीं होता और पृथ्वी की सतह से टकरा जाता है तो यह खतरनाक साबित हो सकता है।

नासा के मॉनिटर विभाग ने बताया है कि यह उल्कापिंड 10 से 11 दिसंबर तक यह उल्का पृथ्वी के करीब पोहचेगी। एक अनुमान के अनुसार यह 330 मीटर बड़ा है जो इसे ज्यादातर उल्कापिंड में की श्रेणी में विशालकाय माना जाता हे, या कहे तो 90 परसेंट उल्का पिंडों से बड़ा है। मगर यह अभी तक धरती से काफी दूरी पर बना हुआ है। अवकाश वैज्ञानिकों का माने तो यह उल्कापिंड पृथ्वी से दूरी बनाकर चलेगा जिससे पृथ्वी पर इससे कोई खतरा नहीं होगा।

वैज्ञानिकों ने बताया कि यह ऐस्ट्रॉयड 2031 मैं पृथ्वी के पास से फिर से गुजरेगा और फिर 2050 को और फिर 2060 को एक बार फिर पृथ्वी के नजदीक देखा जाएगा। गौरतलब है कि जैसे बडे एस्ट्रॉयड अवकाश में घूमते रहते हैं और कहीं ग्रहों से टकराते भी रहते हैं अगर ऐसे बडे ऐस्टॉयड किसी ग्रह से टकरा जाए तो उसको खतरनाक माना जा सकता है। इसी के लिए नासा इसरो जैसी संस्थाएं अवकाश का अध्ययन करती रहती है और ऐसे खतरे को टालने की हर संभव कोशिश करती है।

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