डॉलर के मुकाबले पहली बार रुपया 80 के पार, क्‍यों आ रही लगातार गिरावट और क्‍या होगा असर?

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भारतीय मुद्रा ‘रुपया (INR)’ के लिए ये सबसे खराब दौर चल रहा है. रुपये की वैल्यू (Indian Rupee Value) पिछले कुछ समय के दौरान बड़ी तेजी से कम हुई है. रुपया लगातार एक के बाद एक नए निचले स्तर (Rupee All Time Low) पर गिरता जा रहा है. मंगलवार को शेयर बाजारों (Share Market) में गिरावट के बीच रुपये ने गिरने का नया रिकॉर्ड बना दिया. रिजर्व बैंक (RBI) के हालिया प्रयासों के बाद भी रुपया संभल नहीं पा रहा है और मंगलवार को शुरुआती कारोबार में यह डॉलर (USD) के मुकाबले पहली बार 80 से भी नीचे गिर गया.

रुपये की वैल्यू डॉलर के मुकाबले लगातार कम होते गई है। अभी प्रमुख मुद्राओं के बास्केट में डॉलर के लगातार मजबूत होने से भी रुपये की स्थिति कमजोर हुई है। करीब दो दशक बाद डॉलर और यूरो की वैल्यू बराबर हा चुकी है, जबकि यूरो (Euro) लगातार डॉलर से ऊपर रहता आया है. भारतीय रुपये की बात करें तो दिसंबर 2014 से अब तक यह डॉलर के मुकाबले करीब 25 फीसदी कमजोर हो चुका है। रुपया साल भर पहले डॉलर के मुकाबले 74.54 के स्तर पर था. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (FM Nirmala Sitharaman) ने सोमवार को कहा था कि रुपये में हालिया गिरावट का कारण कच्चे तेल की कीमतों (Crude Oil Prices) में आई तेजी और रूस-यूक्रेन के बीच महीनों से जारी जंग (Russia-Ukraine War) है।

क्‍या है गिरावट का प्रमुख कारण

रुपये में कमजोरी का सबसे बड़ा कारण ग्‍लोबल मार्केट का दबाव है, जो रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से आया है. ग्‍लोबल मार्केट में कमोडिटी पर दबाव की वजह से निवेशक डॉलर को ज्‍यादा पसंद कर रहे हैं, क्‍योंकि वैश्विक बाजार में सबसे ज्‍यादा ट्रेडिंग डॉलर में होती है. लगातार मांग से डॉलर अभी 20 साल के सबसे मजबूत स्थिति में है. इसके अलावा विदेशी निवेशक इस समय भारतीय बाजार से लगातार पूंजी निकाल रहे हैं, जिससे विदेशी मुद्रा में कमी आ रही और रुपये पर दबाव बढ़ रहा है. वित्‍तवर्ष 2022-23 में अप्रैल से अब तक विदेशी निवेशकों ने 14 अरब डॉलर की पूंजी निकाल ली है.

वित्‍तमंत्री ने भी जताई चिंता

वित्‍तमंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को संसद में बताया कि 31 दिसंबर, 2014 से अब तक रुपये में 25 फीसदी की गिरावट आ चुकी है. इसमें ग्‍लोबल फैक्‍टर की सबसे बड़ी भूमिका है. रूस-यूक्रेन युद्ध, क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमत और ग्‍लोबल मार्केट की खराब फाइनेंशियल कंडीशन के कारण रुपये पर सबसे ज्‍यादा दबाव बढ़ा है.

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